आपके जीवन में बहुत उपयोगी है वास्तु शास्त्र के सिद्धांत पंडित दीपक पांडे
वास्तु शास्त्र में भावनाओं के निर्माण में क्षेत्र चल पावक गगन समीरा इन पांच तत्वों की उपाध्यता सर्व स्वीकार है और इन्हीं तत्वों से या समूची सृष्टि एवं मनुष्य के शरीर निर्मित है इन्हीं पंचभूतड़िक तत्वों का संतुलन वस्त्र का मूल है
भारत की वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ पंडित दीपक पांडे ने बताया की भूमि की ढलान का भी आपके जीवन पर विशेष प्रभाव पड़ता है यदि आपकी भूमि पूर्व की और हलदर है तो वह भूमि धनदायक होती है और जिस भूमि का दल अग्नि कोण की ओर हूं वह भूमि बाहर दायक होती है दक्षिण में हालदार भूमि मतदायक होती है और नृत्य की ओर ढलदार हूं धन हानि करवाती है पश्चिमी ढलदार भूमि संतान की हानि करवाती है और वेब में ढलदार भूमि जमीन के कारण आपको प्रदेशवासी बना देती है और उसे जमीन पर बने मकान में आप बहुत दिन नहीं रह पाते हैं उत्तर की ओर ढलदार होने पर धन की वृद्धि करती है और ईशान कोण की ओर ढलदार भूमि आपको शिक्षा क्षेत्र भी अग्रसर करवाती है भूमि के मध्य में सात नीचे रहने में गड्ढा होने पर कचड़ाव होता है जो भूमि दक्षिण पश्चिमी नृत्य एवं बाइबिल में ऊंची होती है इस गज भूमि कहा जाता है और ऐसी भूमि पर मकान एवं दुकान का निर्माण शुभ एवं लाभदायक होता है ऐसी भूमि जो मध्य भाग से ऊंची हो तथा चारों दिशाओं में झुकी हो वह भूमि पूर्व पृष्ठभूमि कहलाती है इस भूमि पर निर्माण शुभ एवं लाभदायक होता है जो भूमि किस अग्नि कोण और पूर्व में ऊंची हो उसे दैत्य भूमि कहते हैं इस पर बने भवन निर्माण को अशुभ माना गया है उसी प्रकार जो भूमि उत्तर दक्षिण में ऊंची हो एवं मध्य में नीची हो उसे नाग पृष्ठभूमि कहते हैं और इस पर निर्माण करके निवास करना अशुभ है
भारत के वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ पंडित दीपक पांडे ने बताया की भूखंड का चयन करते समय उसके आसपास की भूमि एवं वातावरण पर विचार करना श्रेष्ठ होता है आप जो भूखंड पसंद कर रहे हैं यदि उसके ईशान कोण की ओर तालाब नदी पानी की टंकी है तो यह शुभ है नृत्य पूर्ण में ऊंची इमरती हूं तो उत्तम दक्षिण पश्चिम में पहाड़ या ऊंची चट्टानें हो तो भी शुभ भूखंड के समीप दक्षिण पश्चिम में कोई तालाब गड्ढा कुआं आदि हो तो वह भूमि अशुभ होती है
भारत की वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ पंडित दीपक पांडे ने बताया कि वास्तु शास्त्र के अनुसार सर्वप्रथम भूखंड का शिला पूजन करें और फिर न्यू का पूजन करें न्यू पूजा करके दक्षिण पूर्व की कुर्मी प्रथम शीला न्यास करके शेष चारों सनिलाओं को प्रशिक्षण क्रम से स्थापित करें और महर्षि कश्यप के अनुसार सूत्राभिक शिलान्यास तथा प्रथम स्तंभन स्थापना पूर्व दक्षिण के मध्य यानी आधुनिक पूर्ण ही करना श्रेष्ठ कर होता है
भारत की वास्तु शास्त्र विशेष पद्धति पर पानी बताया कि वास्तु शास्त्र नियम की अनुसार पूर्व में स्नानागार अग्नि में रसोई कच्छ दक्षिण में संकट नृत्य पूर्णिमा विश्राम कक्ष पश्चिम में भोजन का वेब में भंडार कच्छ उत्तर में धनगर ईशान में पूजा कच्छ दक्षिण एवं नृत्य के मध्य शौचालय उत्तर पश्चिम के मध्य संकट पूर्व एवं ईशान के मध्य स्वागत कक्ष का निर्माण करवाना चाहिए
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