एक चुटकी सिंदूर ज्योतिष और वास्तु शास्त्र में महत्व
सिंदूर शब्द सुनते ही सबसे पहले आंखों के सामने दो दृश्य उपस्थित होने लगते हैं एक स्त्री की मांग और दूसरा लाल या पीला रंग यह लाल रंग एक स्त्री की खुशियों की ताकत स्वास्थ्य सुंदरता आज से जुड़ा रहता है हजारों हजार वर्षों से यह रंग विवाहित स्त्री की पहचान और उसकी सामाजिक रुतबे का पर्याय बना हुआ है एक दौर ऐसा भी आया जब इसे डाकिया नसी और आउटडेटेड मान लिया गया जिसे सिर्फ रीति रिवाज मानने वाली स्त्रियां ही लगती है लेकिन देखा जाए तो इसका चलन काम जरूर हुआ है मगर खत्म कभी नहीं हुआ अब इसी हरकत की महिलाएं लगती हैं किसी के लिए स्वास्थ्य समृद्धि और मानसिक ताकत से जुड़ा है तो वही सेलिब्रिटीज के लिए यह फैशन स्टेटमेंट बन चुका है दूसरी ओर एक आम स्त्री के लिए यह एक अनिवार्य परंपरा है जिसे उसे हर हाल में निभाना होता है....
"क्यों लगती हैं सिंदूर स्त्रियां"
कानपुर ज्योतिषी और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ पंडित दीपक पांडे ने बताया की सिंदूर लगाने या सिंदूर दान का इतिहास लगभग 5100 सालों का माना गया है धार्मिक और पौराणिक कथाओं में भी इसका वर्णन मिलता है जिसकी अनुसार देवी माता पार्वती और मां सीता भी सिंदूर से मांग भर्ती थी ऐसा कहा जाता है की पार्वती अपने पति शिव जी को बुरी शक्तियों से बचने के लिए सिंदूर लगाती थी मां सीता अपने पति राम की लंबी उम्र के लिए कामना तथा मां की खुशी के लिए सिंदूर लगाती थी महाभारत महाकाव्य में द्रोपती निराशा में अपनी माथे का सिंदूर पूछ देती हैं एक एक अन्य मानता भी है की लक्ष्मी का पृथ्वी पर पांच स्थानों पर वास है इनमें से एक स्थान मस्तक भी है इसलिए विवाहित महिलाएं मांग में सिंदूर भरती हैं ताकि उनके घर में लक्ष्मी का वास और सुख समृद्धि आए सिंदूर का चलन भले ही पौराणिक समय से रहा हो लेकिन तब से आज की आधुनिक युग तक इसका सबसे बड़ा महत्व एक स्त्री के लिए उसके पति की लंबी उम्र की कामना और विवाहित होने के दर्जे से है जब एक लड़की की मांग में सिंदूर भरा जाता है तो उसकी एक अलग सामाजिक पहचान कायम हो जाती है अतः सिंदूर स्त्रियां विवाह के बाद ही लगा सकती हैं विवाह एक पवित्र बंधन है इस पवित्र बंधन में बढ़ने से पहले कई रश्मि संपन्न होती है इनमें सबसे अहम है सिंदूरदान सनातन समाज में जब एक लड़की की शादी होती है तो उसकी मांग में सिंदूर भरा जाता है यह सिंदूर पति भरता है वहीं कई कई जगह में पति की मां यानी कि विवाहिता की सास भी अपनी बहू की मांग भर्ती है और इस प्रकार जो पहचान बनती है उसका अटूट संबंध पति से होता है ऐसी मान्यता है कि विवाहित स्त्री जितनी लंबी मांग भर्ती है पति की आयु भी उतनी ही लंबी होती है इसलिए ज्यादातर महिलाएं मांग भरकर के ही सिंदूर लगाती है सिंदूर का संबंध जीवनसाथी की दीर्घायु की कामना और अच्छी स्वास्थ्य के साथी पत्नी की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ भी है मंगनी सिंदूर भर जाने के बाद एक स्त्री का नया जन्म होता है और इस नए जीवन के साथ उसकी कई नई जिम्मेदारियां और दायित्व विरासत में मिलती है जीवन की इस नई पारी भी उसकी खुशियों के साथ-साथ मानसिक तनाव भी मिलता है कहते हैं कि सिंदूर तनाव को भी काम कर देता है लाल रंग शक्ति और स्फूर्ति का भी परिचायक माना गया है अत इससे आपकी ताकत का एहसास होता है भारतीय ज्योतिष के अनुसार मेष राशि का स्थान माथे पर माना जाता है जिसका स्वामी मंगल है मंगल का रंग सिंदरी है इसी शुभ मानते हैं और इसी शुभ की कामना के लिए स्त्रियां माथे पर सिंदूर सजाती है आपको बताते चलें कि भगवान हनुमान जी की पूजा सिंदूर से की जाती है उनके शरीर पर यही लाल सिंदूर लगाया आता है मंदिरों में बहुत सी देवियों को सिंदूर लगाया जाता है हमारे देश में कई पर्व है जिनमें सिंदूरदान की परंपरा रही है छठ पूजा नवरात्रि तीज करवा चौथ आदित्य त्योहार पर स्त्रियों की मांग में सिंदूर भरा जाता है छठ पूजा में तो स्त्रियां नाक से लेकर के सिर तक लंबा सिंदूर लगाती है ऐसी मान्यता है कि इससे पति की आयु लंबी होती है और सुख समृद्धि बढ़ती है छठ पर्व पर स्त्रियां पीला सिंदूर भी लगती है .
"लाल या पीला सिंदूर"
कानपुर के ज्योतिषी और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ पंडित दीपक पांडे ने बताया की सिंदूर एक परंपरा है एक विश्वास है एक पहचान है और पत्नी की कामनाओं की अभिव्यक्ति भी है ऐसी मान्यता है की माता सती और पार्वती की शक्ति और ऊर्जा लाल रंग से व्यक्त हुई है इसीलिए अधिकतर स्त्रियों लाल रंग का सिंदूर लगाती हैं जबकि विवाह में पीले सिंदूर का भी चलन है छठ पूजा में तो पीले रंग का ही सिंदूर इस्तेमाल होता है छठ पर्व पर स्त्रियां लंबा सिंदूर लगाती है नाक से लेकर माथे तक लंबा पीड़ा सिंदूर लगाने के पीछे यही कामना होती है कि पति की भी उतनी ही लंबी उम्र हो और वह उतनी ही तरक्की करें नवरात्रि में आखिरी दिन स्त्रियां पंडाल में विराजमान देवी दुर्गा को भी सिंदूर लगाती है इसी सिंदूर खेला कहा जाता है उसे समय पहले तक वर्षों पुरानी इस परंपरा में केवल विवाहित स्त्रियां ही भाग लेती थी जिसमें से लाल रंग की साड़ी पहनकर माथे पर एक दूसरे को सिंदूर लगाया था हालांकि अब इस सिंदूर खेला में सभी महिलाएं हिस्सा लेती है यहां पर भी सिंदूर खेला एक स्त्री की सामाजिक पहचान से जुड़ा हुआ है एक चुटकी सिंदूर की कीमत कोई नहीं जान सकता और ना ही एक चुटकी सिंदूर एक महिला के लिए हकीकत में बदल एक सपना है एक ताकत है एक विश्वास एक परंपरा है एक सौभाग्य है एक रिवाज है और सबसे अधिक महत्वपूर्ण या है कि नारी की पहचान है नारी का एक सम्मान है.
"वैज्ञानिक महत्व"
कानपुर की ज्योतिषी वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ पंडित दीपक पांडे ने बताया की पौराणिक और धार्मिक मान्यताओं के अलावा कुछ अन्य मान्यताएं भी है जिनकी आधार पर सिंदूर का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है इनका संबंध मां और शरीर से है शरीर के जिस हिस्से में यानी सर पर सिंदूर लगाया जाता है वह बहुत ही कोमल होता है और इस स्थान को ब्रह्म रंध्र कहा जाता है सिंदूर में पर होता है जो एक दवा का काम करता है यह रक्तचाप को नियंत्रित में रखता है जिससे तनाव और अनिद्रा दूर भागती है साथ ही साथ यह चेहरे पर झुरिया नहीं पढ़ने देता.
"वास्तु शास्त्र के अनुसार सिंदूर"
भारत के ज्योति और वास्तु शास्त्री पंडित दीपक पांडे बताते हैं या आपने देखा होगा कुछ लोग अपने दरवाजे पर सरसों का तेल और सिंदूर का टीका लगाकर रखते हैं खासतौर पर दिवाली के दिन तो जरूर ही तेल और लगते हैं क्या आप जानते हैं इसके पीछे क्या कारण है वास्तु शास्त्र के विज्ञान के अनुसार दरवाजे पर सिंदूर और तेल लगाने से आपकी घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है और यह घर में मौजूद वस्तुओं को भी दूर करने में कारगर माना जाता है जबकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दरवाजे पर तेल लगाने से दरवाजा आपका लंबे समय तक सुरक्षित रहता है इसलिए दरवाजे पर सिंदूर लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है कानपुर से पंडित दीपक पांडे ज्योतिषी और वास्तु शास्त्र विशेषज्ञ 9451360382
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